बोस्तान सादी
एक नई और क़ैदी
एक शख़्स कृपापूर्ण और सखावत वाली
तबीयत रखने के बावजूद कंगाल था ।
(ख़ुदा करे कि कमीने को माल ना मिले और पुण्यवान तंग-दस्त ना हो )
एक क़ैदी ने उस की तरफ़ पैग़ाम भेजा कि
ऐ !नेकबख़्त अमीर मेरी मदद कर कि मैं क़ैद-ख़ाने में हूँ।
ख़ाली हाथ सखी ने क़ैद करने वालों को कहा इस को मेरी ज़मानत पर रिहा कर दो ।
उन्होंने बात मान ली और क़ैदी को खोल दिया
तो वो ऐसे भागा जैसे परिंदा पिंजरे का दरवाज़ा खुला देखकर भागता है
और ऐसी दौड़ लगाई कि इस की गर्द-ए-राह का हवा भी मुक़ाबला ना कर सकी।
उन्होंने उसी वक़्त उस ज़मानती को पकड़ लिया कि या पैसे निकालो या बंदा दो।
बेचारा बेक़सूर जेल में पड़ा रहा ना किसी को पत्र लिखा ना
पैग़ाम भेजा, अर्से बाद किसी दोस्त का उस तरफ़ से गुज़र हुआ तो उसने पूछा
ऐ नेकबख़्त मेरा नहीं ख़्याल कि तो ने चोरी की हो या किसी का माल खाया हो!
फिर जेल में क्यों है?
उसने कहा बात तो ऐसे ही है मगर मैंने इसी जेल में एक क़ैदी को परेशान हाल देखा तो
अपने आपको क़ैदी बना लेने के इलावा मुझे उस की रिहाई नज़र ना आई ।
आख़िरकार बेचारा जेल में ही मर गया।
मगर नेक-नामी ले गया।
ज़िंदा-दिल शख़्स मिट्टी के नीचे भी सोया हो तो इस का जिस्म इस ज़िंदा आलिम से बेहतर है
जिसका दिल मुर्दा हो क्योंकि ज़िंदा-दिल का जिस्म मर भी जाये तो कोई हर्ज नहीं उस का दिल तो ज़िंदा है
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